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नीले घोड़ा रा असवार, मारा मेवाड़ी सरदार
राणा सुनता ही जाजो जी, मेवाड़ी राणा…
महाराणा प्रताप Maharana Pratap पर बना ये राजस्थानी लोकगीत आज भी सुनते
है, तो शरीर में शक्ति का एक भूचाल आता है. महाराणा Maharana की प्रशंसा
में बना यह गीत सुनकर छाती चौड़ी होती है, तो वह इंसान कैसा होगा इसकी कल्पना
करना भी बहुत मुश्किल है.
है, तो शरीर में शक्ति का एक भूचाल आता है. महाराणा Maharana की प्रशंसा
में बना यह गीत सुनकर छाती चौड़ी होती है, तो वह इंसान कैसा होगा इसकी कल्पना
करना भी बहुत मुश्किल है.
भारतीय इतिहास में जब कभी भी योद्धाओं की बात होती है तो महाराणा प्रताप की बात
करना तो बनता ही है. राजस्थान की धरती पर जन्मे इस राजा की बहादुरी के कई
किस्से है. तो आइए जानते है बप्पा रावल के वंशज वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह
के बारे में.
करना तो बनता ही है. राजस्थान की धरती पर जन्मे इस राजा की बहादुरी के कई
किस्से है. तो आइए जानते है बप्पा रावल के वंशज वीर शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह
के बारे में.
MAHARANA PRATAP Blog introduction
- वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जीवनी – Story of MAHARANA PRATAP
- महाराणा प्रताप का अकबर के साथ युध्द – MAHARANA PRATAP’S war with Akbar
-
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक और हाथी रामप्रसाद – MAHARANA PRATAP’S horse
CHETAK and elephant RAMPRASAD - महाराणा प्रताप का निजी जीवन – Personal life of MAHARAJA a PRATAP
वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जीवनी – Story of MAHARANA PRATAP
महाराणा प्रताप का जन्म Maharana Pratap birth 9 मई 1540 में मेवाड़ के कुंभलगढ़
दुर्ग में हुआ था. उनके जन्म के समय मेवाड़ अपने सबसे कठिन वक्त से गुजर रहा था.
मेवाड़ के कुछ हिस्सों पर अफगानी सरदार सम्सखाँ का अधिपत्य था.
दुर्ग में हुआ था. उनके जन्म के समय मेवाड़ अपने सबसे कठिन वक्त से गुजर रहा था.
मेवाड़ के कुछ हिस्सों पर अफगानी सरदार सम्सखाँ का अधिपत्य था.
महाराणा प्रताप राणा सांगा के पौत्र और राणा उदयसिंह के पुत्र थे. महाराणा
प्रताप की माता का नाम रानी जैवन्ताबाई था. रानी जैवन्ताबाई राणा उदयसिंह की
प्रथम पत्नी और मेवाड़ की महारानी थी.
प्रताप की माता का नाम रानी जैवन्ताबाई था. रानी जैवन्ताबाई राणा उदयसिंह की
प्रथम पत्नी और मेवाड़ की महारानी थी.
महाराणा प्रताप बचपन से ही शूरवीर, स्वाभिमानी और निडर थे. रानी जैवन्ताबाई
महाराणा प्रताप की माँ के साथ उनकी प्रथम गुरु भी थी. महाराणा प्रताप की माँ ने
उनको कभी आत्मसमर्पण क्या है, ये सिखाया ही नही.
महाराणा प्रताप की माँ के साथ उनकी प्रथम गुरु भी थी. महाराणा प्रताप की माँ ने
उनको कभी आत्मसमर्पण क्या है, ये सिखाया ही नही.
महाराणा प्रताप की उम्र महज 12 साल थी तब उनको आचार्य राघवेन्द्र के गुरुकुल
में भेज दिया गया था. महाराणा प्रताप वहाँ सुबह में शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान
प्राप्त करते. दोपहर के समय प्रताप जंगल मे भीलो की बस्ती में जाते.
में भेज दिया गया था. महाराणा प्रताप वहाँ सुबह में शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान
प्राप्त करते. दोपहर के समय प्रताप जंगल मे भीलो की बस्ती में जाते.
भीलो ने ही महाराणा प्रताप को छापामार युध्द सिखाया था. महाराणा
प्रताप जल्द ही भीलो के साथ जुल मिल गए थे. बस्ती में रहने वाले ज्यादातर भील
गुजराती भाषा बोलने वाले थे. उन भीलो ने ही महाराणा को कीका नाम दिया था.
प्रताप जल्द ही भीलो के साथ जुल मिल गए थे. बस्ती में रहने वाले ज्यादातर भील
गुजराती भाषा बोलने वाले थे. उन भीलो ने ही महाराणा को कीका नाम दिया था.
गुजराती में कीका शब्द का मतलब बेटा होता है.
राजवंश के बड़े बेटे होने के कारण छोटी उम्र में ही उन्होंने अपना पहला युद्ध
लड़ा था. महाराणा प्रताप ने अपना पहला युध्द अफगान सरदार सम्सखाँ के खिलाफ लड़ा
था. उस लड़ाई में अद्वितीय साहस दिखाने के कारण 17 साल की उम्र में ही उन्हें
मेवाड़ की सेना का सेनापति भी बनाया गया था.
लड़ा था. महाराणा प्रताप ने अपना पहला युध्द अफगान सरदार सम्सखाँ के खिलाफ लड़ा
था. उस लड़ाई में अद्वितीय साहस दिखाने के कारण 17 साल की उम्र में ही उन्हें
मेवाड़ की सेना का सेनापति भी बनाया गया था.
महाराणा प्रताप का अकबर के साथ युध्द – Maharana Pratap’s War with Akbar
महाराणा प्रताप Maharana Pratap और अकबर akbar के बीच कई
युध्द हुए थे…पर हल्दीघाटी के युध्द Haldighati war को सबसे
महत्वपूर्ण युध्द माना जाता है.
युध्द हुए थे…पर हल्दीघाटी के युध्द Haldighati war को सबसे
महत्वपूर्ण युध्द माना जाता है.
हल्दीघाटी का युध्द Haldighati war 21 जून 1576 को हल्दी
घाटी Haldighati में लड़ा गया था.
अकबर akbar की सेना में 80,000 से भी ज्यादा सिपाही
थे. जब की महाराणा की सेना Maharana Pratap में सिर्फ
15,000 सिपाही थे.
घाटी Haldighati में लड़ा गया था.
अकबर akbar की सेना में 80,000 से भी ज्यादा सिपाही
थे. जब की महाराणा की सेना Maharana Pratap में सिर्फ
15,000 सिपाही थे.
महाराणा प्रताप की सेना के प्रमुख सेनापति का नाम रामसिंह तंवर
Ramsingh tanwar, रामदास राठौड़ Ramdas Rathod और कृष्णदास
चूंडावत Krishnadas Chundawat था.
हल्दीघाटी Haldighati के युध्द में महाराणा की सेना में कुछ
भीलो ने भी अपना योगदान दिया था. जिनका नेतृत्व भील सरदार पुंजा जी ने किया था.
Ramsingh tanwar, रामदास राठौड़ Ramdas Rathod और कृष्णदास
चूंडावत Krishnadas Chundawat था.
हल्दीघाटी Haldighati के युध्द में महाराणा की सेना में कुछ
भीलो ने भी अपना योगदान दिया था. जिनका नेतृत्व भील सरदार पुंजा जी ने किया था.
महाराणा प्रताप Maharana Pratap की सेना में केवल हिन्दू ही
नही पर कुछ अफगानों ने भी अपना सहयोग दिया था. महाराणा प्रताप की सेना की अगुआई
पठान सरदार हाकिम खाँ शूरी ने की थी. जो बरसो से अकबर akbar को अपने
परिवार का दुश्मन मानता था.
नही पर कुछ अफगानों ने भी अपना सहयोग दिया था. महाराणा प्रताप की सेना की अगुआई
पठान सरदार हाकिम खाँ शूरी ने की थी. जो बरसो से अकबर akbar को अपने
परिवार का दुश्मन मानता था.
लेकिन हल्दीघाटी के युध्द Haldighati war में हाकिम खाँ शूरी
अपना साहस दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. दुश्मनो ने उनका सर धड़ से काट
दिया था. परंतु मर जाने बाद भी उनका शरीर घोड़े से गिरा नही. उन्होंने मर
जाने के बार घोड़े की लगाम और हाथ से तलवार नही छोड़ी थी. इसीलिए उनको घोड़े सहित
ही दफनाया गया था. महाराणा Maharana ने उनकी तारीफ में यह कहा
था कि,
अपना साहस दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. दुश्मनो ने उनका सर धड़ से काट
दिया था. परंतु मर जाने बाद भी उनका शरीर घोड़े से गिरा नही. उन्होंने मर
जाने के बार घोड़े की लगाम और हाथ से तलवार नही छोड़ी थी. इसीलिए उनको घोड़े सहित
ही दफनाया गया था. महाराणा Maharana ने उनकी तारीफ में यह कहा
था कि,
“ना तो शमशीर छुटी, ना ही लगाम”
हल्दी घाटी के युध्द Haldighati war में राणा ने अपना
अद्वितीय साहस दिखाया था. उन्होंने अकबर के प्रमुख सेनापति बहलोल खान को उसके
घोड़े सहित दो हिस्सों में काट दिया था. हल्दी घाटी के युध्द Haldighati war का परिणाम तो राणा के खिलाफ हुआ था पर आज भी राणा ने अपने अद्वितीय साहस के
लिए याद किया जाता है.
अद्वितीय साहस दिखाया था. उन्होंने अकबर के प्रमुख सेनापति बहलोल खान को उसके
घोड़े सहित दो हिस्सों में काट दिया था. हल्दी घाटी के युध्द Haldighati war का परिणाम तो राणा के खिलाफ हुआ था पर आज भी राणा ने अपने अद्वितीय साहस के
लिए याद किया जाता है.
हल्दीघाटी के युद्ध बाद महाराणा प्रताप सिंह ने यह प्रतिज्ञा ली थी…और जंगलो में रहना तय किया था.
धारी एक टेक एक इष्ट बिना निमनोना,
जिमनोना मिष्ट जोलो अवध उखेरो ना।।१।।
होती मुगलानी क्षत्रिय पुत्रीन को मिटाऊँ ना,
त्योलो जंगल मे फिरू शिर केश को उतारू ना।।२।।
सोहो प्रताप त्योलो नाम है प्रताप मेरो,
होऊ नही शांत ज्योलो दिल्ली गढ़ जारू ना।।३।।
हल्दी घाटी Haldighati का युध्द केवल चार घंटो तक ही चला था. पर इन
चंद घंटों में इतना नर संहार हुआ कि आज भी हल्दी
घाटी Haldighati के मैदान से खून और तलवारों का मलबा मिलता
है.
चंद घंटों में इतना नर संहार हुआ कि आज भी हल्दी
घाटी Haldighati के मैदान से खून और तलवारों का मलबा मिलता
है.
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक और हाथी रामप्रसाद – Maharana Pratap’s Horse
Chetak and Elephant Ramprasad
दुनिया का एकमात्र ऐसा घोड़ा जिस पर कई सारे लोकगीत लिखे गए. महाराणा प्रताप के
पास चेतक नाम का एक घोड़ा था. यह बहुत कम लोग जानते है कि राणा के पास रामप्रसाद
नाम का एक हाथी भी था.
पास चेतक नाम का एक घोड़ा था. यह बहुत कम लोग जानते है कि राणा के पास रामप्रसाद
नाम का एक हाथी भी था.
महाराणा प्रताप की ऊंचाई 7.5 फिट थी. राणा युद्ध मे
70 किलो का कवच, 10 किलो के जूते, 80 किलो का भाला और
20 किलो की दो तलवारे लेकर चेतक पर बैठ कर युद्ध करते थे.
70 किलो का कवच, 10 किलो के जूते, 80 किलो का भाला और
20 किलो की दो तलवारे लेकर चेतक पर बैठ कर युद्ध करते थे.
हल्दीघाटी के युद्ध मे चेतक ने भी अपना परम साहस और स्वामिभक्ति दिखाई थी.
हल्दीघाटी युध्द में चेतक के शरीर पर 20 से भी ज्यादा घाव हुए थे…और उसका एक
पांव भी काट गया था.
हल्दीघाटी युध्द में चेतक के शरीर पर 20 से भी ज्यादा घाव हुए थे…और उसका एक
पांव भी काट गया था.
फिर भी वह अपने स्वामी की जान बचाने के लिए 28 फिट का गहरा नाला कूद गया
था. इस छलांग की वजह से चेतक ने अपनी जान गवाई थी. चेतक नीले रंग का अफगानी
घोड़ा था. जिसे प्रताप अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे.
था. इस छलांग की वजह से चेतक ने अपनी जान गवाई थी. चेतक नीले रंग का अफगानी
घोड़ा था. जिसे प्रताप अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे.
बहुत कम लोगो को पता है कि
महाराणा प्रताप के पास रामप्रसाद नाम का एक हाथी भी था. हल्दी घाटी के
युध्द में अकेले रामप्रसाद ने ही अकबर के चार हाथी मार डाले थे.
महाराणा प्रताप के पास रामप्रसाद नाम का एक हाथी भी था. हल्दी घाटी के
युध्द में अकेले रामप्रसाद ने ही अकबर के चार हाथी मार डाले थे.
अकबर ने चालाकी से रामप्रसाद को अगवा कर लिया था…और अपने साथ ले गया था. अकबर
ने बाद में रामप्रसाद का नाम बदलकर पीर रख लिया था. रामप्रसाद ने भी अपने
स्वामी से बिछड़ने के वियोग में खाना पीना बंद कर दिया था.रामप्रसाद ने एक महीने
तक कुछ ना खाने के कारण कमजोरी की वहज से वीरगति को प्राप्त हो गया था.
ने बाद में रामप्रसाद का नाम बदलकर पीर रख लिया था. रामप्रसाद ने भी अपने
स्वामी से बिछड़ने के वियोग में खाना पीना बंद कर दिया था.रामप्रसाद ने एक महीने
तक कुछ ना खाने के कारण कमजोरी की वहज से वीरगति को प्राप्त हो गया था.
महाराणा प्रताप का निजी जीवन – Personal life of MAHARANA PRATAP
Photo Credit:
IndianRajput
महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदयसिंह और पिता का नाम रानी जैवन्ताबाई
था. महाराणा प्रताप का विवाह ईस 1557 में 17 साल की उम्र में हुई थी. महाराणा
प्रताप का विवाह महारानी अजबदे पवार के साथ हुआ था…जो उस समय 15 साल की थी.
महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां, 17 पुत्र और 5 बेटियां थी.
महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां, 17 पुत्र और 5 बेटियां नाम
● महारानी अजबदे पवार
1. अमर सिंह प्रथम 2. भगवान दास
● चंपाबाई जाला
1. सनवाल दास 2. कल्ला सिंह 3. दुर्जन सिंह
● जसोबाई चौहान
1. कल्याण दास
● फूलबाई राठौड़
1.चंदा सिंह 2.शिखा सिंह
● आलमदेबाई चौहान
1. जसवंत सिंह
● लखाबाई
1.रायभाना सिंह
● खींचड़ आशाबाई
1. राम सिंह 2. हत्थी सिंह
● सोलंकीनी पुर बाई
1. गोपाल सिंह 2. साशा सिंह
● हाड़ा शाहमतीबाई
1. पूरा सिंह
● अमरबाई राठौड़
1. नत्था सिंह
● रत्नावती बाई पवार
1. माल सिंह 2. गज सिंह 3. क्लिंगू सिंह
Note
दोस्तों अगर आपको हमारा ये BOLG पसंद आया हो…और इसमें आपको कोई भूल या कमी नजर
आयी हो तो हमे COMMENT के माध्यम से सूचित करें. ■ आपकी बताई गई सूचना को हम 48
घंटे में सही करने की कोशिस करेगे…ओर आपके एक सुजाव से किसीके पास भी गलत
information नही पहोच पायेगी.