18वीं शताब्दी का भारत, मराठाओ की शक्ति अपनी चरम सीमा पर थी आधे भारत पर मराठाओ
का राज था. दिल्ली में अभी भी मुगलों का राज था, पर उनकी शक्ति केवल दिल्ली की
सीमाओं तक ही सीमित थी.
का राज था. दिल्ली में अभी भी मुगलों का राज था, पर उनकी शक्ति केवल दिल्ली की
सीमाओं तक ही सीमित थी.
ये वो दौर है, जिसमे पुराना जा रहा था, नया आ रहा था. कई शक्तियां एक दुशरे से
टकरा रही थी. मुगल सल्तनत कमजोर पड़ चुकी थी. मुगल सेना शक्तिहीन हो चुकी थी. मुगल
बादशाह पूरी तरह से क्षत्रिय शक्तियों पर निर्भर था.
टकरा रही थी. मुगल सल्तनत कमजोर पड़ चुकी थी. मुगल सेना शक्तिहीन हो चुकी थी. मुगल
बादशाह पूरी तरह से क्षत्रिय शक्तियों पर निर्भर था.
1760 तक भारत मे कई छोटे-बड़े राजे-राजवाड़े थे. पर सबसे बड़ा रजवाड़ा मराठाओ का था.
दिल्ली में मुगल बादशाह का राज था. राज्थान में राजपूत और कई छोटी-बड़ी रियासतों
का राज था. अवध, जयनगर, मेवाड़ और मारवाड़ जैसी कई छोटी-बड़ी रियासते थी. दक्खन के
कुछ हिस्सों पर अभी भी निजामशाही थी, ओर वह भी शक्तिहीन हो चुकी थी. और सबसे बड़ी
ताकत मराठो की थी. अटक से कटक तक मराठो का राज था.
दिल्ली में मुगल बादशाह का राज था. राज्थान में राजपूत और कई छोटी-बड़ी रियासतों
का राज था. अवध, जयनगर, मेवाड़ और मारवाड़ जैसी कई छोटी-बड़ी रियासते थी. दक्खन के
कुछ हिस्सों पर अभी भी निजामशाही थी, ओर वह भी शक्तिहीन हो चुकी थी. और सबसे बड़ी
ताकत मराठो की थी. अटक से कटक तक मराठो का राज था.
कई इतिहासकारो का मानना है, मराठाओ की ताकत उनके सर चढ़कर बोलने लगी थी. भारत भूमि
पर ऐसा कोई नही था जो मराठाओ के खिलाफ जा सके. मराठाओ के खिलाफ जा सके ऐसा बस एक
ही था काबुल का राजा अहमदशाह अब्दाली. इसीलिए मराठाओ की सबक सिखाने के लिये सबने
मिलकर अहमदशाह अब्दाली को भारत आने का निमंत्रण दिया.
पर ऐसा कोई नही था जो मराठाओ के खिलाफ जा सके. मराठाओ के खिलाफ जा सके ऐसा बस एक
ही था काबुल का राजा अहमदशाह अब्दाली. इसीलिए मराठाओ की सबक सिखाने के लिये सबने
मिलकर अहमदशाह अब्दाली को भारत आने का निमंत्रण दिया.
तो आइये जानते है, Bharatvarsh gyan के इस नये अध्याय में पानीपत की तीसरी लड़ाई
The Battle Of Panipat 3 के बारे में…..
The Battle Of Panipat 3 के बारे में…..
पानीपत की तीसरी लड़ाई – Third Battle of Panipat
इतिहासकारो की माने तो, सन 1760 आते-आते मराठाओ ने निजामशाही को पूरी तरह से खत्म
कर दिया था. अभी भी कुछ निजाम बचे थे, जिन्होंने मराठाओ के साथ मिलकर अपना राज
कायम रखा था. निजामशाही पर जीत पाने के बाद मराठा पूरे भारत के शाशक बन गये थे.
कर दिया था. अभी भी कुछ निजाम बचे थे, जिन्होंने मराठाओ के साथ मिलकर अपना राज
कायम रखा था. निजामशाही पर जीत पाने के बाद मराठा पूरे भारत के शाशक बन गये थे.
मराठो का वर्चस्व दिल्ली, दक्कन, रूहेलखंड के साथ-साथ पंजाब तक फैला था. मराठा
साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में सिंधु नदी के अटक को लगती थी. मराठाओ ने शिखसेना
और मुगल सेना के साथ मिलकर 1758 तक लाहौर, पेशावर, अटक और मुलतान पर कब्जा कर
लिया. जाने अंजाने में मराठो ने अफगानिस्तान के सुल्तान अहमदशाह अब्दाली को
चुनौती दी थी.
साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में सिंधु नदी के अटक को लगती थी. मराठाओ ने शिखसेना
और मुगल सेना के साथ मिलकर 1758 तक लाहौर, पेशावर, अटक और मुलतान पर कब्जा कर
लिया. जाने अंजाने में मराठो ने अफगानिस्तान के सुल्तान अहमदशाह अब्दाली को
चुनौती दी थी.
अहमदशाह अब्दाली ने दुर्रानी साम्राज्य स्थापित किया था तब उसने पश्चिमी पंजाब के
कुछ हिस्से दुर्रानी साम्राज्य में शामिल किये थे. मराठो ने जब उत्तरी भारत पर
अपना कब्जा करना शुरू किया तब उनकी सीधी टक्कर अहमदशाह अब्दाली से हो गई थी.
कुछ हिस्से दुर्रानी साम्राज्य में शामिल किये थे. मराठो ने जब उत्तरी भारत पर
अपना कब्जा करना शुरू किया तब उनकी सीधी टक्कर अहमदशाह अब्दाली से हो गई थी.
मराठो ने पश्चिमी भारत मे भी अपना कब्जा करना शुरू कर दिया. जैसे कि, ओडिशा,
बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश. यहां पर मराठा सेना पूरी तरह से फैल गई और स्थानिक
राजाओ से चौथ की रकम जमा करना शुरू किया था. इसीलिए स्थानिक राजाओ की अपने
अस्तित्व का खतरा लगने लगा था.
बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश. यहां पर मराठा सेना पूरी तरह से फैल गई और स्थानिक
राजाओ से चौथ की रकम जमा करना शुरू किया था. इसीलिए स्थानिक राजाओ की अपने
अस्तित्व का खतरा लगने लगा था.
इतना ही नहीं, इसके साथ-साथ मराठाओ ने राजपुताना में भी अपना कब्जा करना शुरू
किया. इससे तंग आकर जयपुर के राजा माधोसिंह ने मराठो को सबक सिखाने का ठान लिया.
पर माधोसिंह अच्छी तरह से जनता था कि, वह अकेले मराठो से लड़ने जाएगा तो बच नही
पायेगा. इसीलिए उसने दिल्ली के बादशाह के साथ मिलकर अहमदशाह अब्दाली को भारत आने
का निमंत्रण दिया.
किया. इससे तंग आकर जयपुर के राजा माधोसिंह ने मराठो को सबक सिखाने का ठान लिया.
पर माधोसिंह अच्छी तरह से जनता था कि, वह अकेले मराठो से लड़ने जाएगा तो बच नही
पायेगा. इसीलिए उसने दिल्ली के बादशाह के साथ मिलकर अहमदशाह अब्दाली को भारत आने
का निमंत्रण दिया.
अफगानिस्तान से जब अहमदशाह अब्दाली ने अक्टूबर 1769 में छठी बार भारत की तरफ कूच
किया तो यह तय था कि, उसे मराठो की हराना ही होगा. अहमदशाह अब्दाली अटक के रास्ते
से होकर पंजाब को जीतता हुआ दिल्ली तक आ गया. बीच मे कई बार उसे स्थानिक रियासतो
की फौज और मराठा फौज का सामना करना पड़ा. पर मराठा अहमदशाह अब्दाली को रोकने में
असफल हुए.
किया तो यह तय था कि, उसे मराठो की हराना ही होगा. अहमदशाह अब्दाली अटक के रास्ते
से होकर पंजाब को जीतता हुआ दिल्ली तक आ गया. बीच मे कई बार उसे स्थानिक रियासतो
की फौज और मराठा फौज का सामना करना पड़ा. पर मराठा अहमदशाह अब्दाली को रोकने में
असफल हुए.
रास्ते में अपना वर्चस्व स्थापित करता हुआ अब्दाली जुलाई 1760 में अनूप शहर पहुच
गया. अहमदशाह अब्दाली जब भारत आया तब मराठा सेना दक्कन में निजाम पर विजय प्राप्त
कर पुणे लौटी थी. दक्कन में निजाम के खिलाफ युद्ध के सुरमा थे सदाशिवराव भाऊ.
उनको मराठो के सबसे सफल सेनापतियों में से एक माना जाता है.
गया. अहमदशाह अब्दाली जब भारत आया तब मराठा सेना दक्कन में निजाम पर विजय प्राप्त
कर पुणे लौटी थी. दक्कन में निजाम के खिलाफ युद्ध के सुरमा थे सदाशिवराव भाऊ.
उनको मराठो के सबसे सफल सेनापतियों में से एक माना जाता है.
7 मार्च 1760 को मराठा सेना सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में उदगीर से दिल्ली के लिए
रवाना हुई. उदगीर से दिल्ली तकरीबन एक हजार मिल दूर है. जब सदाशिवराव भाऊ के
नेतृत्व में यह अभियान शुरू हुआ तब उनके पास चालीस से पचास हजार सैनिक और लगभग
उतने ही सेवक भी थे. मराठो की सबसे बड़ी कमजोरी कम असला-बारूद और रसत था.
रवाना हुई. उदगीर से दिल्ली तकरीबन एक हजार मिल दूर है. जब सदाशिवराव भाऊ के
नेतृत्व में यह अभियान शुरू हुआ तब उनके पास चालीस से पचास हजार सैनिक और लगभग
उतने ही सेवक भी थे. मराठो की सबसे बड़ी कमजोरी कम असला-बारूद और रसत था.
मराठा सेना उदगीर से निकलकर अहमदनगर, औरंगाबाद, बुराहनपुर, हंडिया, सिरहोंन और
बैरसिया होते हुए चम्बल तक पहुच गये. चम्बल पहुचने के बाद मराठा सेना धौलपुर हुते
हुए भरतपुर पहुचे. भरतपुर पहुच कर मराठा वहां कुछ दिन ठहरे और विश्राम किया.
भरतपुर के शाशक सूरजमल जाट ने मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ को सलाह दी कि, वह
अपना भारी सामान और सस्त्र भरतपुर में ही छोड़ कर जाये और हल्के हथियारों के साथ
युद्ध करे.
बैरसिया होते हुए चम्बल तक पहुच गये. चम्बल पहुचने के बाद मराठा सेना धौलपुर हुते
हुए भरतपुर पहुचे. भरतपुर पहुच कर मराठा वहां कुछ दिन ठहरे और विश्राम किया.
भरतपुर के शाशक सूरजमल जाट ने मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ को सलाह दी कि, वह
अपना भारी सामान और सस्त्र भरतपुर में ही छोड़ कर जाये और हल्के हथियारों के साथ
युद्ध करे.
सूरजमल जाट ने सदाशिवराव भाऊ को यह सलाह भी दी कि, वह अहमदशाह अब्दाली से छापामार
युद्ध (गोरिला वॉरफेर) करे. पर खुले मैदान में यह तकनीक असफल थी. पर सदाशिवराव
भाऊ सूरजमल जाट की बातों में आ गये. सूरजमल जाट ऐसा करके मराठो को सबक सिखाना
चाहते थे. 2 जून 1760 में मराठा सेना ग्वालियर पहुची. मराठा सेना जब ग्वालियर
पहुची तब अहमदशाह अब्दाली तब के अनूपशहर और आज के उत्तर प्रदेश में था.
युद्ध (गोरिला वॉरफेर) करे. पर खुले मैदान में यह तकनीक असफल थी. पर सदाशिवराव
भाऊ सूरजमल जाट की बातों में आ गये. सूरजमल जाट ऐसा करके मराठो को सबक सिखाना
चाहते थे. 2 जून 1760 में मराठा सेना ग्वालियर पहुची. मराठा सेना जब ग्वालियर
पहुची तब अहमदशाह अब्दाली तब के अनूपशहर और आज के उत्तर प्रदेश में था.
मराठा सेना और अहमदशाह अब्दाली की सेना अब एक-दुषरे से केवल तीनसौ किलोमीटर की
दूरी पर थी. भारत मे अहमदशाह अब्दाली का सबसे बड़ा समथर्क रोहिलखण्ड का शाशक नजिम
उदौला था. रोहिलखण्ड में नजिम उदौला का बड़ा वर्चस्व था.
दूरी पर थी. भारत मे अहमदशाह अब्दाली का सबसे बड़ा समथर्क रोहिलखण्ड का शाशक नजिम
उदौला था. रोहिलखण्ड में नजिम उदौला का बड़ा वर्चस्व था.
दुशरी तरफ मराठा सेना अनूपनगर जाने की बजाए दिल्ली की तरफ कुछ की. सदाशिवराव भाऊ
के नेतृत्व में मराठा सेना ने जल्द ही दिल्ली पर अपना कब्जा कर दिया. मराठो ने यह
सोच कर दिल्ली की तरफ कूच की थी कि, दिल्ली का खजाना मिलजाये तो वह लोगो का आगे
का सफर आसान हो जाये. पर दिल्ली पहले से ही खजाना खाली थी. ऊपर से दिल्ली शाही
परिवार के खाने का खर्च भी बढ़ने लगा.
के नेतृत्व में मराठा सेना ने जल्द ही दिल्ली पर अपना कब्जा कर दिया. मराठो ने यह
सोच कर दिल्ली की तरफ कूच की थी कि, दिल्ली का खजाना मिलजाये तो वह लोगो का आगे
का सफर आसान हो जाये. पर दिल्ली पहले से ही खजाना खाली थी. ऊपर से दिल्ली शाही
परिवार के खाने का खर्च भी बढ़ने लगा.
उसी समय सदाशिवराव भाऊ को अपने गुप्तचरो से यह सूचना मिली कि, कुंजपुरा किले में
एक अफगान सेनापति पन्द्रहजार सैनिको की सेना के साथ डेरा जमाये बैठा है. जो यमुना
पार करके अहमदशाह अब्दाली की सेना के साथ मिलने वाला है. तभी सदाशिवराव भाऊ ने
दिल्ली से मराठा सेना का रुख कुंजपुरा की तरफ मोड़ा.
एक अफगान सेनापति पन्द्रहजार सैनिको की सेना के साथ डेरा जमाये बैठा है. जो यमुना
पार करके अहमदशाह अब्दाली की सेना के साथ मिलने वाला है. तभी सदाशिवराव भाऊ ने
दिल्ली से मराठा सेना का रुख कुंजपुरा की तरफ मोड़ा.
16 अक्टूबर 1760 को मराठा सेना ने कुंजपुरा किले को चारों तरफ से घेर लिया और उस
पर आक्रमण किया. इब्राहिमखान गर्दी जिसे उस वक्त का सबसे सटीक तोपची मन जाता था
वो मराठाओ की सेना में था. इब्राहिमखान गर्दी ने कुंजपुरा किले को कुछ ही समय मे
तहस-नहस कर दिया. कहते है कि, दश हजार अफगानी सैनिको को काट दिया गया. उस युद्ध
को कुंजपुरा के इतिहास का सबसे खूनी युद्ध भी माना जाता है.
पर आक्रमण किया. इब्राहिमखान गर्दी जिसे उस वक्त का सबसे सटीक तोपची मन जाता था
वो मराठाओ की सेना में था. इब्राहिमखान गर्दी ने कुंजपुरा किले को कुछ ही समय मे
तहस-नहस कर दिया. कहते है कि, दश हजार अफगानी सैनिको को काट दिया गया. उस युद्ध
को कुंजपुरा के इतिहास का सबसे खूनी युद्ध भी माना जाता है.
बाकी बचे अफगानी सैनिको ने अपने मुँह में घास डालकर समर्पण कर दिया. मराठो ने
बाकी बचे पाँच हजार सैनिको को गुलाम बना दिया. कुंजपुरा से मराठो को सात से आठ
लाख रुपये और कई हजार मण गेहू की बोरियां मिली. जिससे उनकी रसत की मांग पूरी हो
गई. एक और अहमदशाह अब्दाली ने यमुना नदी को पार कर लिया वही दुशरी और सदाशिवराव
भाऊ मराठा सेना के साथ कुंजपुरा से निकल कर कुरुक्षेत्र की और आगे बढ़े.
बाकी बचे पाँच हजार सैनिको को गुलाम बना दिया. कुंजपुरा से मराठो को सात से आठ
लाख रुपये और कई हजार मण गेहू की बोरियां मिली. जिससे उनकी रसत की मांग पूरी हो
गई. एक और अहमदशाह अब्दाली ने यमुना नदी को पार कर लिया वही दुशरी और सदाशिवराव
भाऊ मराठा सेना के साथ कुंजपुरा से निकल कर कुरुक्षेत्र की और आगे बढ़े.
वही सदाशिवराव भाऊ को खबर मिली कि, अहमदशाह अब्दाली ने यमुना नदी को पार कर लिया
है. इसीलिए उन्होंने दिल्ली वापस जाना सोचा परंतु सदाशिवराव भाऊ और अहमदशाह
अब्दाली की सेना आमने-सामने आ गई थी. मराठो ने अफगानिस्तान से अहमदशाह अब्दाली का
रास्ता रोक लिया था और अहमदशाह अब्दाली ने मराठो का दिल्ली और पुणे के रास्ता रोक
रखा था.
है. इसीलिए उन्होंने दिल्ली वापस जाना सोचा परंतु सदाशिवराव भाऊ और अहमदशाह
अब्दाली की सेना आमने-सामने आ गई थी. मराठो ने अफगानिस्तान से अहमदशाह अब्दाली का
रास्ता रोक लिया था और अहमदशाह अब्दाली ने मराठो का दिल्ली और पुणे के रास्ता रोक
रखा था.
Who Won The Battle Of Panipat 3 ?
आखिरकार वह दिन आ गया था, जब मराठा और अफगान आमने-सामने आ गए थे. 14 जनवरी 1760
मकरसंक्रांति का दिन जब सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठा और अहमदशाह अब्दाली
के नेतृत्व में अफगानों के बीच पानीपत की तीसरी लड़ाई Battle Of Panipat 3 को लड़ा
गया. हालांकि, इस लड़ाई में मराठो को हार का सामना करना पड़ा था फिर भी उनका
वर्चस्व भारत मे कायम रहा.
मकरसंक्रांति का दिन जब सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में मराठा और अहमदशाह अब्दाली
के नेतृत्व में अफगानों के बीच पानीपत की तीसरी लड़ाई Battle Of Panipat 3 को लड़ा
गया. हालांकि, इस लड़ाई में मराठो को हार का सामना करना पड़ा था फिर भी उनका
वर्चस्व भारत मे कायम रहा.
कई इतिहासकारो का मानना है कि, मराठो और अफगानों के बीच लड़ी गई यह लड़ाई केवल दो
शाशको के बीच की नही थी. उससे भी कई आगे की थी. इस दिन को भारत के इतिहास का सबसे
काला दिन माना जाता है.
शाशको के बीच की नही थी. उससे भी कई आगे की थी. इस दिन को भारत के इतिहास का सबसे
काला दिन माना जाता है.
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