यह कहानी है भारत के उस महान योद्धाओ की जिनकी वजह से भारत आज भारत है. अगर वह
नही होते तो, पता नही भारत आज होता के नही होता. अगर होता तो वह कैसा होता.
सम्राट अशोक को प्राचीन भारत मे मौर्य साम्राज्य के राजा के रूप में जाना जाता
है. अपने पिता बिंदुसार की मृत्यु के बाद उन्होंने छोटी सी आयु में राजगद्दी
संभाली थी. सम्राट अशोक के बारे में कहा जाता है कि, उन्होंने अपने पराक्रम से
अपने राज्य की सीमा को उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के तट तक
विकसाया था.
आइये जानते है, देवप्रियदर्शी यशश्वी धर्मराज चक्रवर्ती सम्राट अशोक के
जीवन के बारे में…..
सम्राट अशोक की जीवनी – Story of Smrat ashoka
आज हम आपको एक ऐसे आदमी के बारे में बताने जा रहे है जो राजा होते हुए भी, महान और महान और काबिले तारीफ था. उसका नाम है चन्द्रगुप्त मौर्य का पोता चक्रवर्ती सम्राट अशोक. जिसे लोग अशोक महान से भी जानते है.
चक्रवर्ती सम्राट अशोक के वारे में एच.जी.वेल्स अपनी किताब में लिखते है,” जहाँ एक और इतिहास के हासियो में दश हजार राजाओं का जिक्र मिलता है, वहाँ एक नाम उन सबसे अलग ध्रुव तारा से चमकता हुआ नजर आता है और वो है, चक्रवर्ती सम्राट अशोक का नाम.”
भारत का एक ऐसा राजा जिसका नाम आज भी रूस से लेकर जापान तक इज्जत से लिया जाता है…इतना ही नही तिब्बत, चीन और भारत मे भी.
एक दंत कथा के अनुसार अशोक की माँ चम्पा (आज के चंपारण) की रहने वाली थी. अशोकवेदांत में अशोक की माँ का नाम थम्मा बताया गया है हालांकि दूसरे धर्मग्रंथों में अशोक की माँ का नाम सुभद्रांगी बनाता गया है.
सुभद्रांगी के पिता को एक ज्योतिषि ने कहा था की, उनकी पुत्री का विवाह एक सम्राट से होगा और उनके दो पुत्रों में से एक चक्रवर्ती सम्राट बनेगा. यह सुनकर सुभद्रांगी के पिता उसे लेकर मगध की राजधानी पाटलीपुत्र आये और मगध के राजा बिंदुसार को सॉप दिया.
अशोक का जब जन्म हुआ था तब उसे देख लग नही रह था कि, वह बड़ा होकर चक्रवर्ती सम्राट बनेगा. चक्रवर्ती सम्राट तो छोड़ो यह भी नही लग रहा था कि, वह सम्राट बनेगा. अशोकवेदांत और लोककथाओं के अनुसार बालक अशोक को देखकर राजा बिंदुसार को खुशी नही हुई थी. राजा बिंदुसार अशोक से नफरत करते थे.
किसे पता था कि, यह बालक आगे चलकर दुनिया के महान सम्राटों में से एक कहलायेगा. राजा बिंदुसार को अपनी दुशरी रानियों से एक्सो एक बालक और थे. और उन्ही में से एक को मगध का सिंहासन मिलने वाला था. इसीलिए राजा बिंदुसार ने अपने बेटों की वीरता और बुद्धिकौशल देखने के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया. जिसमे सभी राजकुवारों को हिस्सा लेने का कहा गया.
राजकुँवर अशोक यह प्रतियोगिता में हिस्सा लेना नही चाहते थे परंतु, माता सुभद्रांगी के कहने पर अशोक मान गये और चल पडे पाटलीपुत्र से राजवन के लिए. रास्ते मे उन्हें राजा बिंदुसार के मंत्री राधा गुप्त मिले. राधा गुप्त हाथी पर सवार होकर राजवन जा रहे थे उन्होंने अशोक को अपने साथ बिठा लिया.
राजा बिंदुसार चाहते थे कि, राजगुरु पिंगलवत्स उनके बेटो की प्रतियोगिता देखे और अगले राजा का चुनाव करे. राजकुँवरो की प्रतियोगिता देखकर राजगुरु पिंगलवत्स ने अपना जवाब पहेली में दिया.
राजगुरु पिंगलवत्स ने कहा कि,
” महाराज आपके सभी पुत्रों में से जिसकी सवारी सर्वश्रेष्ठ है, वही आपका उत्तराधिकारी बनने के योग्य है.”
इससे भी राजा बिंदुसार को पता नही चला कि, अगला राजा कौन बनेगा.
राजगुरु पिंगलवत्स ने फिर कहा कि,
” महाराज आपके सभी पुत्रों में से जिसका आसन सर्वश्रेष्ठ है, वही आपका उत्तराधिकारी बनने के योग्य है.”
राजगुरु पिंगलवत्स की पहेलियों से राजा बिंदुसार को पता नही चल पाया कि अगला राजा कौन बनेगा. परंतु, अशोक समज गया था कि, राजगुरु पिंगलवत्स पहेलियों में उसी की बात कर रहे है. राजगुरु पिंगलवत्स की पहेलियां सुनकर अशोक ने ठान लिया था कि, वही मगध साम्राज्य का अगला राजा बनेगा.
परंतु उत्तराधिकारी के रूप में राजा बिंदुसार की पहली पसंद उनका सबसे बड़ा बेटा राजकुँवर सुसीम था. राजा बिंदुसार सुसीम को मगध की राजगद्दी पर देखना चाहते थे. राजा बिंदुसार बिल्कुल भी नही चाहते थे कि, उनके बाद अशोक मगध की राजगद्दी पर बिराजे. समय के साथ यह विवाद भी बड़ा होता गया कि, आगे चलकर मगध साम्राज्य की राजगद्दी पर कौन बिराजेगा.
सम्राट अशोक का सामर्थ्य – The power of Emperor Ashoka
राजगद्दी के तनाव समय में खबर आई कि, मगध साम्राज्य के एक हिस्से तक्षशिला में विद्रोह हो गया है. यह विद्रोह को कुचलने की जिम्मेदारी राजकुँवर सुसीम को दी गई. जब कि, वह तक्षशिला के क्षेत्रपाल थे. राजकुँवर सुसीम के कई प्रयासो के बाद भी विद्रोह की स्थिति काबू में नही आ पाई थी.
इसीलिए राजा बिंदुसार ने राजकुँवर अशोक को सुशीम की सहायता हेतु तक्षशिला भेजा. राजकुँवर अशोक ने अपने पराक्रम और बुद्धिकौशल से कुछ ही दिनों में तक्षशिला का विद्रोह कुचल दिया. जिससे राजा बिंदुसार अशोक से बहुत प्रभावित हुए थे.
ऐसा विद्रोह फिर न हो पाये इसीलिए राजा बिंदुसार के एक मंत्री राधा गुप्त ने बिंदुसार को सलाह दी कि, तक्षशिला के क्षेत्रपाल राजकुँवर अशोक को बनाया जाये. क्योकि, तक्षशिला मगध साम्राज्य के व्यापार का प्रमुख केंद्र था.
परंतु राजा बिंदुसार ने पुत्रप्रेम में ऐसा नही किया और सुसीम को ही तक्षशिला का क्षेत्रपाल बनाया. जब की, राजकुँवर अशोक को उज्जैन का क्षेत्रपाल नियुक्त किया.
अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति आदर – Ashoka’s respect for Buddhism
तक्षशिला में विद्रोह को कुचलने में राजकुँवर अशोक का प्रमुख योगदान था. इसीलिए राजा बिंदुसार ने उन्हें उज्जैन का क्षेत्रपाल नियुक्त किया था. क्षेत्रपाल के रूप में राजकुँवर अशोक ने उज्जैन में कई वर्ष काम किया. उस वक्त अशोक की मुलाकात सुखविहार नाम के व्यापार श्रेणी के प्रमुख से हुई. सुखविहार व्यापार श्रेणी के प्रमुख के साथ बौद्ध संगठन का सदस्य भी था.
सुखविहार उज्जैन में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए एक विहार की स्थापना करना चाहते थे. सुखविहार का यह विचार राजकुँवर अशोक को बहुत ही पसंद आया था. राजकुँवर अशोक ने विहार बनाने के लिए जगह और धन का भी प्रबंध करवाया था. इतना ही नही बौद्धों का हौसला बढ़ाने के लिए राजकुँवर अशोक खुद भूमि पूजन में उपस्थित रहे थे.
देखते ही देखते राजकुँवर अशोक का बौद्ध धर्म के प्रति आदरभाव और बढ़ता चला गया. इतना ही नही उन्होंने और कई जगहो पर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विहारो की स्थापना करवाई.
राजकुँवर अशोक द्वारा उज्जैन में किये गए बदलाव – Changes made in Ujjain by Rajkumar Ashok
1. राजकुँवर अशोक के क्षेत्रपाल बनने से पहले उज्जैन में बौद्ध भिक्षुओं को भिक्षा मांगने और बौद्ध धर्म का प्रचार करने की अनुमति नही थी. परंतु राजकुँवर अशोक के क्षेत्रपाल बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने यह करार नाबूद कर दिया.
2. राजकुँवर अशोक उज्जैन को मगध का व्यापार केंद्र बनाना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने उज्जैन में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यापार कर को बहुत ही कम कर दिया था.
3. राजकुँवर अशोक ने उज्जैन में और भी कई धर्म कार्य किये थे. जैसे कि, हिन्दू धर्म के प्रचार के लिए कई मंदिरों का और बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए कई स्तूपों का निर्माण करवाया था.
राजकुँवर सुसीम को राजा बनाने का षडयंत्र – Conspiracy to make Rajkumar Susim king
यह तो तय था कि, राजा बिंदुसार राजकुँवर सुसीम को ही अपना उत्तराधिकारी मानते थे और शायद अगला राजा भी. परंतु मगध साम्राज्य के प्रधानमंत्री राधा गुप्त राजकुँवर सुसीम को राजा के योग्य नही मानते थे. राधा गुप्त राजकुँवर अशोक को राजगद्दी के योग्य मानते थे.
राजकुँवर सुसीम को राजा बनाने के लिए राजा बिंदुसार और उनके एक और मंत्री विक्रमभट्ट ने मिलकर एक साजिश रची. वही दुशरी और यह साजिश की खबर प्रधानमंत्री राधा गुप्त को मिली. राधा गुप्त ने तुरंत ही अपना एक गुप्तचर तक्षशिला भेजा. राजकुँवर अशोक को राजा बिंदुसार और मंत्री विक्रमभट्ट की साजिश के बारे में आगाह करने के लिए.
प्रधानमंत्री राधा गुप्त के अनुसार तक्षशिला में एक बार फिर विद्रोह हो गया था. इसीलिए राजकुँवर सुशीम को एक बार फिर पाटलीपुत्र से तक्षशिला जाना पड़ा क्योंकि, तक्षशिला के क्षेत्रपाल के रूप में राजकुँवर सुशीम नियुक्त किये गए थे.
एक तरफ राजकुँवर सुशीम तक्षशिला जाने के लिए रवाना हुये वही दुशरी और राजा बिंदुसार की तबियत बिगड़ ने लगी. राजा बिंदुसार मरने से पहले सुशीम को मगध साम्राज्य का राजा बनाना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री राधा गुप्त को आदेश दिया कि, राजकुँवर सुशीम को जल्द से जल्द तक्षशिला से पाटलिपुत्र वापस बुलाया जाए और राजकुँवर अशोक को उज्जैन से तक्षशिला भेजा जाये.
परंतु राधा गुप्त ने ऐसा ना करते हुये अशोक को उज्जैन से पाटलीपुत्र बुलाया. और राजकुँवर सुशीम को कई संदेश नही भेजा. राजा बिंदुसार सुशीम की पाटलीपुत्र आने की राह बड़ी बैचेनी से देख रहे थे. परंतु सुशीम की बजाए अशोक को पाटलीपुत्र आते देख राजा बिंदुसार बहुत नाखुश हुए.
इतना ही नही प्रधानमंत्री राधागुप्त ने सुशीम की जगह पर अशोक का राज्याभिषेक कर दिया. अशोक को मगध की राजगद्दी पर बैठा देख राजा बिंदुसार को बड़ा सदमा लगा. राजा बिंदुसार यह सदमा सहन नही कर पाये और दुनिया को अलविदा कह गए.
चीन में सुरक्षित ग्रंथ दिव्यावदान में विवरण मिलता है मृत्यु से पहले राजा बिंदुसार अपने सबसे बड़े बेटे सुशीम को राजा बनाना चाहता था. लेकिन उनके मंत्रियो ने इस न करते अशोक को राजा बनाया.
इसी तरह अशोक मौर्य वंश का तीसरा शाशक बना. अशोकवेदांत में राधागुप्त को आचार्य चाणक्य का पोता बताया गया है. कहा जाता है कि, चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाने में जितनी भूमिका आचार्य चाणक्य की थी. उतनी ही भूमिका राधागुप्त की अशोक को राजा बनाने की थी.
मौर्य साम्राज्य के सबसे पहले राजा चन्द्रगुप्त मौर्य थे. उनके बाद मौर्य साम्राज्य के राजा बिंदुसार बने और उनके बाद मौर्य साम्राज्य के शाशक सम्राट अशोक बने.
सम्राट अशोक और उनके भाइयो के बीच सिंहासन के लिए हुई लड़ाईया – The battle for the throne fought between Emperor Ashoka and his brothers
राजकुँवर सुशीम को जब पता चला कि, राजा बिंदुसार अब नही रहे और अशोक ने अपने आप को राजा घोसित कर लिया है, तब वह तक्षशिला से पांच हजार सैनिकों की सेना के साथ पाटलीपुत्र की और रवाना हुआ. परंतु राजकुँवर सुशीम की सेना को पाटलीपुत्र की सरहद पर ही रोका गया.
तब राजकुँवर सुशीम और अशोक के बीच सुलह करवाने के लिये राधागुप्त ने एक शामियाने का प्रबंध करवाया. परंतु राजकुँवर सुशीम खुद को मगध साम्राज्य का राजा मानते थे इसीलिये उन्होंने अशोक को युद्ध की चेतावनी दी और अपने खेमे में जाने के लिए रवाना हुए.
उसी वक्त राधागुप्त ने सुशीम की हत्या करने के लिए एक हत्यारे को राजकुँवर सुशीम के पीछे भेजा. उस हत्यारे ने राजकुँवर सुशीम को उनके खेमे में पहुचने से पहले ही मार दिया.
उसके बाद अशोक को पता चला कि, उसके दुषरे भाई हरिगुप्त, सैन्यगुप्त, उग्रसेन और पर्वतेश की नजर भी अशोक के राज सिहासन पर है. तभी अशोक ने अपने भाइयो को सूली पर चढ़ाने का आदेश दिया.
बौद्धग्रंथ महावंश के अनुसार सम्राट अशोक के मगध की राजगद्दी पाने के लिए अपने एक्सो एक भाइयो में से निन्यानबे भाइयो की हत्या करवा दी थी. जबकि दूसरे कई ग्रंथो में सिर्फ 6 या 7 भाइयो की हत्या का विवरण मिलता है.
सम्राट अशोक द्वारा अपने भाई तिस्सा को शिखाया गया आदर का पाठ – The text of respect given by Emperor Ashoka to his brother Tissa
सम्राट अशोक के राजा बनने के कुछ साल बाद उनके राजभवन में संगीत का बहुत बड़ा आयोजन किया गया था. जिसमे देश-विदेश के कई बड़े संगीतकारो को निमंत्रण दिया गया था. राजभवन में संगीत महेफिल अपनी चरम सीमा पर थी.
तभी उज्जैन से कुछ बौद्ध भिक्षु पाटलीपुत्र राजभवन में साँची में बने स्तूप का निमंत्रण देने आये थे. इसीलिए संगीत महफ़िल को बीच मे ही रोकना पड़ा था. क्योकि, सम्राट अशोक बौद्ध भिक्षुओं का बड़ा ही आदर करते थे और उन्हें वह ज्यादा इंतजार नही करवाना चाहते थे.
परंतु सम्राट अशोक के छोटे भाई तिस्सा ने उन बौद्ध भिक्षुओं का बहुत अपमान किया था और हंसी उड़ाई थी. क्योकि, संगीत महफ़िल उन बौद्ध भिक्षुओं की वजह से ही रोकी गई थी, जो तिस्सा को पसंद नही आया था.
तिस्सा द्वारा उड़ाये गए मजाक के कारण सम्राट अशोक तिस्सा से बिल्कुल भी खुश नही थे. इसीलिए सम्राट अशोक तिस्सा को अन्य लोगो का आदर करना सिखाना चाहते थे. तभी राधागुप्त ने सम्राट अशोक को एक सलाह दी. जिसमें कहा था कि, तिस्सा की नजर भी दूसरे भाइयो की तरह सम्राट अशोक के राजसिंहासन पर है.
जिससे सम्राट अशोक ने तिस्सा को एक हप्ते के लिए मगध का राजा घोसित कर दिया परंतु एक हप्ते के बाद तिस्सा को फांसी लगाकर मार दिया जाएगा. यह सुनकर तिस्सा को लगा कि बौद्ध भिक्षुओं का अपमान करके उन्होंने सम्राट अशोक के दिल को काफी ठेस पहुंचाई है.
तब तिस्सा ने सम्राट अशोक से माफी मांगी. सम्राट अशोक ने तिस्सा को समजाते हुए कहा कि,” उन बौद्ध भिक्षुओं का समरण है, जिन्हें देखकर दृणा से मुह फेर लिया था तुमने और तुम यह जानना चाहते हो न कि यह बौद्ध भिक्षु उत्तरदायीत्व से मुह फेरकर भी दुखी क्यो रहते है क्योकि, उन्हें पता है कि, एक ना एक दिन सबको मर ही जाना है.”
अशोकवेदांत के अनुसार अपने भाई अर्थात सम्राट अशोक द्वारा सिखाये गये पाठ से तिस्सा खुद से ही दृणा करने लगे थे. तिस्सा अपने तन और मन की शांति के लिए राजपाठ छोडकर हमेशा के लिए बौद्ध भिक्षु बन गए थे.
कैसे बने सम्राट अशोक बौद्ध भिक्षु – How Emperor Ashoka became a Buddhist monk
कई ग्रंथो में विवरण मिलता है कि, कनिष्क साम्राज्य और मगध साम्राज्य की दुश्मनी कई वर्सो पुरानी है. सम्राट अशोक की इच्छा थी कि, कनिष्क साम्राज्य के राजभवन पर मगध साम्राज्य का झण्डा लहराया जाये. इसी इच्छा को पूरा करने के किये सम्राट अशोक ने भारी सैन्य बलों के साथ कनिष्क पर हमला कर दिया था.
यह युद्ध मे दोनों पक्षो के कई सारे सैनिक मारे गए थे और भीषण रक्तपात हुआ था. यह युद्ध सम्राट अशोक जीत गए थे. परंतु, युद्ध मे हुए रक्तपात ने सम्राट अशोक को अंदर से जिजोल दिया था. सम्राट अशोक को खुद से ही दृणा होने लगी थी.
उसके बाद सम्राट अशोक का एक बच्चा महारानी देवी के गर्भ में ही मर गया था. इस घटना ने सम्राट अशोक के दिल को तहसनहस कर दिया था. जिसकी वजह से अशोक अपने भाई तिस्सा को बहुत ही खुशनशीब मानते थे. क्योकि, वह यह सब देखने से पहले ही बौद्ध भिक्षु बन गया था.
अपने विचलित मन को शांत करने के लिए सम्राट अशोक अपने भाई तिस्सा से मिलने जाते है. तिस्सा से मिलने के बाद और भगवान बुद्ध की बताई बातो को सुनकर अशोक के मन को शांति मिलती है. अशोक ने तिस्सा को अपने साथ अपना गुरु बनकर पाटलीपुत्र आने को कहा.
परंतु तिस्सा ने अशोक को आने से मना कर दिया. अशोक ने कहा अगर तुम मेरे साथ नही आ सकते तो में तुम्हारे साथ चलूंगा. सम्राट अशोक ने बौद्ध भिक्षु बनने का ठान लिया था. सम्राट अशोक एक रात सबकुछ छोड़कर एक बौद्ध भिक्षु बन जंगलो में अपने भाई तिस्सा से साथ चले गए.
भगवान बुद्ध का उपदेश – Preaching of lord buddha
भगवान बुद्ध कहते है कि,
” एक राजा भूमि के कोई एक भाग का अधिपति है तो, वह दुशरे भाग को भी जितने के इच्छा रखता है.”
“अगर वह पूरी दुनिया जीत लेता है तो, वह आकाश को जीतने की इच्छा रखता है.”
“वह अधूरे मन से साथ जीता है और अधूरी इच्छाओ से साथ ही मरता है.”
“उसका पूरा जीवन बित जाता है, परंतु उसकी इच्छा पूरी नही होती है”
“कुछ भी अपने साथ नही ले जायेगा और किसीको भी अपने साथ नही ले जा पायेगा.”
“मुट्ठी बंधे आना है, और हाथ पसारे जाना है.”
NOTE :- हमारे द्वारा दी गयी सम्राट अशोक की जानकारी में कोई भूल या त्रुटि है, तो हम इसके लिए क्षमाप्रार्थी
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