नालंदा विश्वविद्यालय : प्राचीन समय की आधुनिक यूनिवर्सिटी
प्राचीन समय मे भारत मे कई यादगार चीजे बनी। कुछ चीजों को किसी की याद में
बनाया गया तो कुछ चीजो को जनकल्याण के लिए बनाया गया। पर नालंदा विश्वविद्यालय
को सिर्फ भारत के विद्यार्थियों के लिए नही पर पूरे विश्व के विद्यार्थियों के
लिए बनाया गया था। नालंदा विश्वविद्यालय में केवल अभयास ही नही पर अभयास के साथ
साथ भारत की संस्कृति और भारत की महानता को भी सिखाया जाता था।
बनाया गया तो कुछ चीजो को जनकल्याण के लिए बनाया गया। पर नालंदा विश्वविद्यालय
को सिर्फ भारत के विद्यार्थियों के लिए नही पर पूरे विश्व के विद्यार्थियों के
लिए बनाया गया था। नालंदा विश्वविद्यालय में केवल अभयास ही नही पर अभयास के साथ
साथ भारत की संस्कृति और भारत की महानता को भी सिखाया जाता था।
नालंदा विश्वविद्यालय जो बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित विश्व का प्रथम
और प्राचीन विश्वविद्यालय था। नालंदा विद्यापीठ की स्थापना 5वीं सदी में ईस 450
में कुमारगुप्त ने की थी। जो गुप्त वंश के शासक थे। नालंदा विश्वविद्यालय में
कई मंदिर,मठ और अभयास के लिए आये विद्यार्थियों के ठहरने के लिए होस्टेलो का
निर्माण किया गया था। जब यह विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाना था तब इसका
बहुत विरोध किया गया था। क्योंकि इससे नालंदा पर विदेशी हमलावरों की गुसपेठ
बढ़ने का डर था। पर जब इसका निर्माण किया गया तब इस नालंदा विद्यालय को
देश और विदेश से समर्थन और आर्थिक सहाय भी मिली।
और प्राचीन विश्वविद्यालय था। नालंदा विद्यापीठ की स्थापना 5वीं सदी में ईस 450
में कुमारगुप्त ने की थी। जो गुप्त वंश के शासक थे। नालंदा विश्वविद्यालय में
कई मंदिर,मठ और अभयास के लिए आये विद्यार्थियों के ठहरने के लिए होस्टेलो का
निर्माण किया गया था। जब यह विश्वविद्यालय का निर्माण किया जाना था तब इसका
बहुत विरोध किया गया था। क्योंकि इससे नालंदा पर विदेशी हमलावरों की गुसपेठ
बढ़ने का डर था। पर जब इसका निर्माण किया गया तब इस नालंदा विद्यालय को
देश और विदेश से समर्थन और आर्थिक सहाय भी मिली।
नालंदा विद्यालय की सभी इमारतो का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया था। नालंदा
विश्वविद्यालय में 10000 विद्यार्थियों के अद्ययन की व्यवस्था थी। जिसके लिए
2000 शिक्षको की व्यवस्था थी। यह पूरा विश्वविद्यालय 14 हेक्टर से भी ज्यादा
वर्ग में फैला हुआ था। नालंदा विद्यालय जो 5 ईसवी से 12 ईसवी तक चला बाद में
इसे तुर्की के सुल्तान इख़्तियारूदीन महमद बिन बख्तियारूदीन खिलजी ने इसे
जला दिया।
विश्वविद्यालय में 10000 विद्यार्थियों के अद्ययन की व्यवस्था थी। जिसके लिए
2000 शिक्षको की व्यवस्था थी। यह पूरा विश्वविद्यालय 14 हेक्टर से भी ज्यादा
वर्ग में फैला हुआ था। नालंदा विद्यालय जो 5 ईसवी से 12 ईसवी तक चला बाद में
इसे तुर्की के सुल्तान इख़्तियारूदीन महमद बिन बख्तियारूदीन खिलजी ने इसे
जला दिया।
नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने के पीछे भी एक कथा है। कथा के अनुसार एक बार
बख्तियार खिलजी बहुत बीमार हो गया था। उसके हकीमो ने उसका बहुत इलाज किया पर
उसका स्वास्थ्य ठीक नही हो रहा था। तब खिलजी को किसी ने नालंदा विद्यालय के
आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीभद्र के बारे में बताया। पर खिलजी को अपने
हकीमो पर पूरा भरोसा था। वह किसी हिन्दू हक़ीम से अपना इलाज नही करवाना चाहता
था। पर बहुत इलाज के बाद उसका स्वस्थ ठीक नही हुआ तो वह राहुल श्रीभद्र से इलाज
के लिये मान गया।
बख्तियार खिलजी बहुत बीमार हो गया था। उसके हकीमो ने उसका बहुत इलाज किया पर
उसका स्वास्थ्य ठीक नही हो रहा था। तब खिलजी को किसी ने नालंदा विद्यालय के
आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीभद्र के बारे में बताया। पर खिलजी को अपने
हकीमो पर पूरा भरोसा था। वह किसी हिन्दू हक़ीम से अपना इलाज नही करवाना चाहता
था। पर बहुत इलाज के बाद उसका स्वस्थ ठीक नही हुआ तो वह राहुल श्रीभद्र से इलाज
के लिये मान गया।
पर उसने एक सर्त रखी। उस सर्त के अनुसार वह किसी हिंदुस्तानी औषधि का इस्तेमाल
नही करेगा और इसके इलाज से वह ठीक नही हुआ तो वह राहुल श्रीभद्र को मृत्युदंड
देगा। ऐसी विचित्र सर्त पर भी राहुल श्रीभद्र ने खिलजी का इलाज किया। और उनके
इलाज से खिलजी स्वस्थ हो गया। पर उसे एक हिन्दुस्तानी हकिम से इलाज करवाने पर
बहुत बुरा लगा।
नही करेगा और इसके इलाज से वह ठीक नही हुआ तो वह राहुल श्रीभद्र को मृत्युदंड
देगा। ऐसी विचित्र सर्त पर भी राहुल श्रीभद्र ने खिलजी का इलाज किया। और उनके
इलाज से खिलजी स्वस्थ हो गया। पर उसे एक हिन्दुस्तानी हकिम से इलाज करवाने पर
बहुत बुरा लगा।
खिलजी ने इस बात का गुस्सा नालंदा विश्वविद्यालय पर उतारा और नालंदा
विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जला दिया। कहा जाता है कि जब लाइब्रेरी को आग
लगाई तो वह पूरे तीन महीने के लिए जलती रही। इतना करने के बाद भी उसका गुस्सा
शांत नही हुआ। और उसने पूरी विद्यालय को ही आग लगा दी। उसने नालंदा के कई बौद्ध
भिक्षुओं और गुरुओ की हत्या करवा दी।
विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जला दिया। कहा जाता है कि जब लाइब्रेरी को आग
लगाई तो वह पूरे तीन महीने के लिए जलती रही। इतना करने के बाद भी उसका गुस्सा
शांत नही हुआ। और उसने पूरी विद्यालय को ही आग लगा दी। उसने नालंदा के कई बौद्ध
भिक्षुओं और गुरुओ की हत्या करवा दी।
नालंदा के कई देश से विद्यार्थि पढ़ने के लिए आते थे। जैसे की अब के
कोरिया,जापान,चीन,तिब्बत और तुर्की भी शामिल हैं।
कोरिया,जापान,चीन,तिब्बत और तुर्की भी शामिल हैं।