पंचबद्री का इतिहास – PANCH BADRI History in Hindi

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पंचबद्री का इतिहास - PANCH BADRI History in Hindi

उत्तराखंड में पंच बदरी panch badri, पंच केदार panch kedar, छोटे चारधाम chote
chardhan एवं पंच प्रयाग को पौराणिक दृस्टि से और हिन्दू धर्म की दृष्टि से
महत्वपूर्ण माना गया है. पंच बदरी panch badri भगवान विष्णु को समर्पित श्रध्दा
का प्रतीक है…जब पंच केदार panch kedar भगवान शिव को समर्पित श्रध्दा का
प्रतीक है. 
● आज हम किसीको चारधाम chardham के बारे में पूछते है तो वह
केदारनाथ,
बद्रीनाथ,
गंगोत्री
और
यमुनोत्री
के बारे में बताते है…जब कि यह छोटे चारधाम है. चारधाम के रूप में
बद्रीनाथ,
जगन्नाथपुरी,
द्वारका
और
रामेश्वरम
को पूजा जाता है.
उत्तराखंड में स्थित पंच बदरी panch badri के नाम कुछ इस तरह है. पंच बदरी
में सबसे पहले बद्रीनाथ धाम आता है. बद्रीनाथ को बद्री विशाल के नाम से भी
जाना जाता है. फिर आदि बदरी aadi badri, योगध्यान बदरी yogdyan badri, वृद्ध
बदरी vrudh badri और भविष्य बदरी bhavishya badri आता है.


पंच बदरी
Panch badri
स्थल
Place
बद्रीनाथ Dadrinathचमोली जिला, उत्तराखंड Chamoli, Uttarakhand
आदि बदरी adi badriउत्तराखंड Uttarakhand
भविष्य बदरी bhavishya badriसुभांई गाँव, उत्तराखंड Subhai village, uttarakhand
योगध्यान बदरी Yog dhyan badriपांडुकेश्वर, उत्तराखंड Pandukeshwar, uttarakhand
वृद्ध बदरी vridh badriअणि मठ, उत्तराखंड  ani muth, uttarakhand


पंचबद्री का इतिहास – History of PANCH BADRI 

1. बद्रीनाथ धाम (बद्री विशाल) 

बद्रीनाथ धाम badrinath dham को सृष्टि का आठवा वैकुंठ माना जाता है.
बद्रीनाथ धाम के बारे में एक ऐसा भी माना जाता है कि यहां पहले भगवान शिव
अपने परिवार के साथ निवास करते थे. लेकिन बाद में भगवान विष्णु ने इस स्थान
को भगवान शिव के मांग लिया था. 
बद्रीनाथ धाम नर और नारायण नाम के दो पहाड़ो के बीच स्थित है. बद्रीनाथ धाम
badrinath dham के बारे में कहा जाता है कि ‘ जो आए बदरी, वो ना आए ओदरी’ जो
आदमी एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुनः माता के गर्भ में नही आना
पड़ता. हिन्दू शास्त्रो के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन मे कम से कम एक बार
बद्रीनाथ के दर्शन करने जा चाहिए.
यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित
है…जिसे लोग बद्रीनाथ मंदिर के नाम से जानते है. बद्रीनाथ मंदिर को
बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह मंदिर भगवान विष्णु के एक
रूप बद्रीनाथ को समर्पित है. यह मंदिर चारधाम, छोटे चारधाम एवं पंच बदरी में
से एक है. ऋषिकेश से बद्रीनाथ मंदिर 294 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित
है. 

2. आदि बदरी

भगवान विष्णु का शुरुआत का स्थान यही था. आदि एक संस्कृत शब्द है. आदि का
अर्थ शुरू होता है. कुछ पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु त्रेतायुग, सतयुग और
द्वापरयुग तक यही पर रहते थे. कलयुग में भगवान विष्णु बद्रीनारायण धाम चले
गए. आदि बदरी aadi badri कोई एक मंदिर नही है, यह 16 मंदिरो के समूह का एक
तीर्थ स्थल है. 
आदि बदरी का मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. वैसे तो आदि बदरी के
बारे में कई कथाएँ प्रचलित है. परंतु एक कथा शिवमहापुराण shivapuran में भी
वर्णित है.
शिवमहापुराण shivpuran के अनुसार परमपिता ब्रह्माजी के पुत्र धर्म और उनकी
पत्नी मूर्ति को दो संतान थी. जिनका नाम नर और नारायण था. नर और नारायण दोनों
भाई भगवान विष्णु के परम भक्त थे. और वह दोनों हररोज बद्रीवन में भगवान
विष्नु की पूजा भक्ति किया करते थे. आदि बदरी वही स्थान है जहां पर नर और
नारायण पूजा किया करते थे.
आदि बदरी चमोली जिले के कर्णप्रयाग और रानीखेत मार्ग पर स्थित है. मंदिर के
पास मीले शिलालेख के अनुसार आदि बदरी तीर्थ स्थल का निर्माण 8वीं सदी में आदि
गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. आदि बदरी के पास ही एक जलधारा बहती है. जिसे
लोग “उतरवाहिनी गंगा” के नाम से जानते है. यह श्रद्धालुओं के दर्शन का प्रमुख
आकर्षण केन्द्र है.

3. वृद्ध बदरी

वृद्ध बदरी बद्रीनाथ धाम से 10 किलोमीटर दूर पूर्व की और स्थित है. वृद्ध
बदरी अलखनंदा नदी के किनारे पर स्थित है. यह तीर्थ स्थल का निर्माण 8वीं सदी
में आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था. वृद्ध बदरी के बारे में कई कथाएं
प्रचलित है.
एक प्रचलित कथा के अनुसार मुनिश्रेष्ठ नारदजी भगवान विष्णु के परम भक्त थे.
भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए नारदजी ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की
थी. नारदजी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वृद्ध स्वरूप में
नारदजी को दर्शन दिया था. इसीलिए यह स्थान को वृद्ध बदरी कहा जाता है. 
वृद्ध बदरी समुद्र तल से 1485 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. वृद्ध बदरी साल के
बारह माह तक खुला रहता है. 

4. योगध्यान बदरी

योगध्यान बदरी बद्रीनाथ धाम badrinath dham से 40 किलोमीटर दूर जोशी मठ में
स्थित है. योगध्यान बदरी का निर्माण द्वापरयुग में राजा पांडु ने करवाया था.
फिर 8वीं सताब्दी में इसका पुनःनिर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा करवाया
था. योगध्यान बदरी के बारे में दो कथाएं प्रचलित है.

योगध्यान बदरी STORY :- 1

द्वापरयुग में हस्तिनापुर के राजा पांडु एक बार शिकार करने के लिए जंगल मे गए
थे. उसी जंगल मे एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ संभोग कर रहे थे. तभी पांडु राजा
ने एक हिरण को देखकर तीर चलाया…परंतु वह तीर हिरन को ना लगकर उस ऋषि को
लगा.
उसी समय वह ऋषि की मृत्यु हो गई. मरते हुए उस ऋषि ने पांडु राजा को श्राप
दिया कि, ‘जैसे ही तुम किसी स्त्री के साथ संबंध बनाओगे उसी समय तुम्हारी
मृत्यु हो जाएगी.’ उसके बार पांडु राजा ने ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के
लिए भगवान विष्णु की आराधना की. परंतु वह उस ऋषि के श्राप से नही बाच पाए
थे…और उनकी मृत्यु हो गई थी. परंतु मारने से पहले वह पांच पुत्र के पिता बन
गए थे. जो आगे चल के पांडव के नाम से प्रसिद्ध हुये.

योगध्यान बदरी STORY :- 2 

यह कहानी भी द्वापरयुग की ही है. अर्जुन भगवान विष्णु के परम भक्त थे. एक बार
भगवान विष्णु bagvan vishnu को प्रसन्न करने के लिये अर्जुन ने घोर तपस्या की
थी. इसीलिए अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए देवराज इंद्र ने स्वर्ग की एक
अप्सरा को अर्जुन के पास भेजा.
परंतु वह अप्सरा भी अर्जुन की तपस्या भंग नही कर पाई. इसी बात से प्रस्सन
होकर देवराज इंद्र ने अर्जुन को साक्षात दर्शन दिए…और भगवान विष्णु की एक
ध्यानमग्न मूर्ति दी. जो आज भी योगध्यान बदरी में बिराजमान है. 
इस मंदिर का निर्माण पांडु राजा द्वारा करवाया गया था. इसीलिए यह जगह को
पांडुकेश्वर भी कहते है. पांडु राजा ने यह मंदिर का निर्माण करवाया
था…इसमें आज भी पांडु राजा द्वारा निर्मित भगवान विष्णु की योगमुद्रा
मूर्ति आज भी देखने को मिलती है.

5. भविष्य बदरी

भविष्य बदरी bhavishya badri को भगवान बद्रीनाथ का भविष्य का स्थान माना जाता
है. ऐसा माना जाता है कि, भगवान बद्री विशाल भविष्य में यही पर पूजे जाएंगे.
यह मंदिर समुद्र तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. 
पुराणों के अनुसार जब बदरीवन में स्थित नर और नारायण नाम के दो पर्वत जब आपस
मे मिल जाएंगे, तब आज के बद्रीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा. इसीलिए भगवान
बद्रीनाथ बद्रीविशाल से निकल कर भविष्य बदरी में निवाश करेंगे. 
भविष्य बदरी तपोवन से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.  इसी जगह पर ऋषि
अगत्स्य ने तपस्या की थी. समुद्र तल से 2744 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होने
के कारण यहां की चढ़ाई बहुत मुश्कित है. इसीलिए शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति
यहां पर नही जा पाते है.

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