Gujarat history

रुद्र महालय का किताबो से मिटा हुआ इतिहास | History and Architecture of Rudra Mahalaya in hindi

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रुद्र महालय (Rudra Mahalaya Sidhpur) : गुजरात के इतिहास का वो सच जो कही खो गया है।

रुद्र महालय गुजरात Rudra Mahalaya in Gujrat राज्य के
पाटन
जिले के सिद्धपुर गांव में स्थित है। रुद्र महालय Rudra Mahalaya प्राचिन
गुजरात के भव्य हिन्दू मंदिरो मे से एक था। जिसका गैर हिन्दू शासको द्वारा
विध्वंस किया गया। 
सिद्धपुर में स्थित बिंदु सरोवर मातृश्राद के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
जिसकी स्थापना खुद भगवान परसुराम ने अपनी माता का श्राद्ध करने के बाद कि थी। तब
से यहां बिंदु सरोवर में मातृश्राद के लिए दुनिया भर से लोग आते है। 

History and Architecture of Rudra Mahalaya

रुद्र महालय (rudra mahalaya) का निर्माण ईस 930 में शूरु हुआ था पर किसी कारणों की वजह से यह पूरा नही हो
पाया था। बाद में इसका निर्माण ईस 1140 में पूरा हुआ था। 
रुद्र महालय भगवान शिव के
एक और स्वरूप रुद्र स्वरूप को अर्पित है। रुद्र महालय की भव्यता का अंदाज इसी बात से
लगाया जा सकता है की सुल्तान अहमद शाह के इतिहासकारों ने इस मंदिर की मूर्तियों
की तुलना चीन की मूर्तियों से की है। 

उन्होंने अपनी किताब में लिखा है की यह
मुर्तिया बहुत ही भव्य है। पर इस मंदिर पर दो बार हमला हुआ जिसमें इसका पूरी तरह
से विध्वंस हो गया। पहली बार विदेशी हमलावर अलाउदीन खिलजी alauddin khilji ने
इसे बहुत नुकसान पहुचाया और वो काफी हद तक सफल भी हो गया था। और दूसरी बार
अहमदाबाद के सुल्तान अहमदशाह ने इसे मिटाने में कोई कसर नही छोड़ी। 
अहमदशाह ने
वहां पर एक मस्जिद भी बना डाली जो अब जामी मस्जिद के नाम से जानी जाती है।

रुद्र महालय विध्वंस | Rudra Mahalaya Demolition

रुद्र महालय Rudra Mahalaya के विध्वंस के बारे में एक प्रसिद्द कथा है। रुद्र
महालय के निर्माण का सपना तब के पाटन के राजा मूलराज सोलंकी ने देखा था। उन्होंने
तब के प्रसिद्द वास्तुकार और ज्योतिष्कार प्रन्धरको बुलाया था। उन्होंने रुद्र
महालय के लिये विशिष्ट पत्थर का चयन किया था। ईस 930 में सस्वती नदी के तट पर
रुद्र महालय का निर्माण शूरु हुआ।
पर निर्माण के कुछ समय के बाद मूलराज सोलंकी की मृत्यु हो गई और राजा की मृत्यु
के बाद वास्तुकार प्रन्धर की भी मृत्यु हो गई। उनके बाद पाटन की गद्दी पर भीमराज
सोलंकी, रानी उदयमती और कामदेव जैसे महान राजा आये। उनके बाद पाटन की गद्दी पर
सिद्धराज जयसिंह आये। उनको किसी ने आपने इस महान सपने के बारे में याद दिलाया। तब
उन्होंने अपने समय के महान वस्तुकार मार्कण्ड को मालवा से बुलाया और रुद्र महालय
पुनःनिर्माण के लिए योग्य समय का चयन करने के लिए कहा। 

सिद्धराज जयसिंह Siddhraj jaysinh के कहने पर वास्तुकार मार्कण्ड ने रुद्र महालय के एक भाग में गड्ढा करवाया
और वहा एक सोने के खिल लगाने को कहा जब सिद्धराज जयसिंह Siddhraj
jaysinh के पूछा की ये खिल क्यों लगाई तो मार्कण्ड ने कहा के ये रुद्र
महालय अब शेशनाग के सिर पर है। इसी लिए ये अब अमर है। पर सिद्धराज जयसिंह को उनकी
बात पर भरोसा नही हुआ और उन्होंने उसका प्रमाण मांगा। तब इसका प्रमाण देते हुए
उन्होंने कहा कि में इसका प्रमाण तो दूँगा पर ये महालय अपनी अमरता खो देगा और
इसके एक एक पत्थर का विध्वंस होगा और आपकी ख्याति भी धूल में मिल जाएगी। 

रुद्र महालय में कुल 1600 खम्बे थे। रुद्र महालय 91 मीटर लंबा
और 70 मीटर चौड़ा था उसके मुख्य गुम्बद की ऊंचाई 46 मीटर थी। रुद्र महालय में प्रवेश के लिए कुल 12 दरवाजे थे।
 पूर्व की तरफ भव्य सुशोभित और सुंदर
नक्काशी वाला कीर्ति तोरण था जो सस्वती नदी के तट की और जाता था। रुद्र महालय में
देवी-देवता ओ की 500 से भी ज्यादा मूर्तिया थी। 
अब यहा पर एक गुम्मट के साथ केवल चार स्तम्ब देखने को मिलते है। यह पर मीले
नक्काशी वाले पत्थर रुद्र महालय की सुंदरता और भव्यता के बारे में बताते
है। 

स्थल : सिद्धपुर,पाटन जिला,गुजरात राज्य
कब चालू हुआ निर्माण : ईस 930 
कब पूरा हुआ निर्माण : ईस 1140
किसने करवाया निर्माण : मूलराज सोलंकी और पूरा करवाया सिद्धराज जयसिंह ने 
प्रकार : मंदिर  
वास्तुकला : मारू गुर्जर स्थापत्य शेली(अंदाजीत)

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