अपने ही भाई ने दारा शुकोह की हत्या कर दी dara shikoh in hindi , dara shukoh biography

dara shikoh
हिन्दुस्तान का एक ऐसा शाहजादा जिसका मानना था कि, जन्नत वही है जहाँ मुल्लाओं का शोर नही है. जिसके एक हाथ मे धर्मग्रंथ थे तो एक हाथ मे उपनिषद. जिसका मानना था कि, हिन्दू और मुस्लिम धर्म की नींव एक ही है. वह शाहजादा जो मस्जिद में नमाज भी पढ़ता था और मंदिर में आस्था भी रखता था.

यह कहानी है, मुगल शासक शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दारा शिकोह की. इतिहासकारो के बीच कई मतभेद है दारा शिकोह के नाम को लेकर. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, उसका नाम दारा शुकोह है. दारा शुकोह का अर्थ सान-ओ-सोहक़त. जब कि, दारा शिकोह का अर्थ होता है, आतंक और जुल्म.


दारा शुकोह dara shukoh शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था. जिसको शाहजहां ने अगला बादशाह घोसित कर दिया था. शाहजहाँ जिसको अपने से जरा सा भी दूर नही जाने देता था. तो आखिर क्यों औरंगजेब ने अपने ही भाई की मौत का फरमान जारी किया था. आखिर क्यों दारा शिकोह dara shikoh की मौत के बाद औरंगजेब ने उसका मुँह देखने से भी मना कर दिया था.

तो आइये जानते है, भारतवर्ष ज्ञान के इस ब्लॉग में शाहजादा सुल्तान महमंद दारा शुकोह dara shikoh के बारे में…..

सुल्तान महमंद दारा शुकोह की कहानी – story of sultan mahamand dara shukoh

Dara-shikoh

सुल्तान महमंद दारा शुकोह Dara shukoh मुगल साम्राज्य के पांचवे बादशाह शाहजहां और मुमताज महल के सबसे बड़े बेटे थे. सुल्तान महमंद दारा शुकोह के बारे में कहा जाता है कि, भारत का इतिहास कुछ और होता अगर औरंगजेब के बजाये दारा शिकोह बादशाह बनते.
दारा शुकोह dara shukoh शाहजहाँ के सबसे बड़े और चहेता बेटा होने की वजह से शाहजहाँ ने दारा शुकोह Dara shukoh को अपना उत्तराधिकारी और अगला बादशाह घोसित किया था. परंपरा के अनुसार मुगल शहजादों को बचपन से ही घोड़ सवारी, तलवारबाजी और शिकार का प्रशिक्षण दिया जाता था. दारा शिकोह ने भी यह सब प्रशिक्षण लिया हुआ था.

परंतु, दारा शिकोह dara shikoh का मन ज्यादातर पढ़ाई में ही लगता था. आगे चलकर दारा शिकोह को पढ़ाई की ऐसी लत लगी कि, वह कभी धार्मिक पुस्तकों के ज्ञान में डुबा रहता तो कभी जामी और रूमी शुफी संतो के शेर और रुबाइयों में खो जाता.


दारा शिकोह को अपने जमाने का एक आला कवि भी माना जाता है. दारा शिकोह के कई शेर आपके दिलोदिमाग पर कुछ अलग ही जादू करते थे. दारा शिकोह के यही शेर उसे और कवियों से जुदा करते है.

“वो पल मेरे हस्ते, जब बन गया दरिया,
चमक उठा हर जर्रा, होके रोशन मेरा,
‎बनके शमा जलता हु, रहे इश्क़ पर में,
बस लम्हा एक बन गया, सफर-ए-उम्र मेरा.”

दारा शिकोह Dara shikoh के इसी रवैये की वजह से औरंगजेब और दरबार के और अधिकारियों को ऐसा लगता था कि, दारा शिकोह एक संत और फ़क़ीर बन सकता है पर, एक बादशाह नही. पर दारा शिकोह को इनकी बातो की कोई भी परवाह नहीं थी. वह तो इन सबसे दूर गीता, कुरान और सूफी संतों की रचनाओं के अध्धयन में लगा था.

दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच दरार – Rift between Dara Shikoh and Aurangzeb

दारा शिकोह Dara shikoh का मानना थी कि, हिन्दू और मुस्लिम भले ही अलग धर्म है, परंतु उनकी बुनियादी नींव एक ही है. दारा के इसी स्वभाव की वजह से वह कट्टरपंथीओ, मुल्लाओं और औरंगजेब के निशाने पर आ गया था. दारा शिकोह का मन पढ़ाई के कामो में ज्यादा लगता था. जबकि, शाहजहाँ उसे दिल्ली सल्तनत की हुकूमत देना चाहता था.

दुशरी तरफ, औरंगजेब की नजर दिल्ली सल्तनत की हुकूमत पर थी. औरंगजेब की नजर में दारा शिकोह एक मजब को छोड़ने वाला था. जबकी, दारा शिकोह Dara shikoh की नजर में औरंगजेब एक धुत और मक्कार नमाजी था.


शाहजहाँ ने औरंगजेब को दक्कन की सूबेदारी दी थी. मुराद को गुजरात की और शुजा को बंगाल की सूबेदारी दी थी. शाहजहाँ दारा शिकोह को अपने से दूर नहीं जा ने देता था. इसीलिए शाहजहाँ ने दारा शिकोह को पंजाब की सूबेदारी दी थी.

फारस के कंधार पर कब्जा करने की वजह से शाहजहाँ ने औरंगजेब को कंधार को मुक्त करने की जिम्मेवारी सोंपी थी. परंतु, दो बार नाकामियाब कोशिश करने की वजह से औरंगजेब को शाहजहाँ के गुस्से का सामना करना पड़ा था. औरंगजेब के बाद कंधार की मुहिम दारा शिकोह को सोंपी गई.

दारा शिकोह ने भी कंधार को जीतने की कई नाकामियाब कोशिश की. पर जब दारा दिल्ली वापस लौटा तो शाहजहाँ ने उसका स्वागत ऐसे किया कि, जैसे वो एक बड़ी जंग जीत कर आया हो. जिससे औरंगजेब के गुस्सादारा शिकोह के प्रति और भी बढ़ गया था. उनके बीच की दूरी और ज्यादा बढ़ गई थी.

दारा शिकोह की संतो से मुलाकात – Dara Shikoh meets saints

Dara Shikoh meets saints

दारा शिकोह कभी- कभी पढ़ने में इतने मगन हो जाते है कि, उनके समय का कोई भान नही रहता था. दारा शिकोह की शादी नादिरा बेगम से हुई थी. शादी के एक साल में ही दारा शिकोह dara shikoh एक बेटी के पिता बन गये थे. परंतु एक बीमारी के चलते दारा की बेटी जल्द ही उसे छोड़कर चली गई थी. जिससे दारा शिकोह को काफी सदमा भी लगा था.

यह सदमे से उभर ने के लिए दारा शिकोह dara shikoh ने सूफी संतों की रचनाओं का सहारा लिया. उनके सहारो में सबसे प्रमुख संत मियाँ मीर थे. दारा शिकोह ने मियाँ मीर को अपना आद्यात्मिक गुरु बनाया था. दारा शिकोह ने अपनी किताब Dara shikoh books ‘सकीना-तूल-ओलिया’ में लाहौर में हुई अपनी और मियाँ मीर की मुलाकातो के बारे में संक्षिप्त विवरण किया है.

लाहौर में ही दारा शिकोह Dara shikoh की मुलाकात एक हिन्दू संत बाबा लाल बैरागी से हुई थी. कहते है कि, दारा शिकोह Dara shikoh के मन मे कई सवाल थे जिसका उत्तर ढूंढने के लिए वह बाबा लाल बैरागी से मिले थे. बाबा लाल बैरागी के वारे मव कहा जाता है कि, वह अव्वल दर्जे के सन्यासी थे और आत्मज्ञान, चिंतन और ध्यान का बड़ा ज्ञान रखते थे.

दारा शिकोह Dara shikoh और बाबा लाल बैरागी के सवाल-जवाब का सिलसिला पूरे नौ दिनों तक चलता रहा था. यह समय दरमियान दारा शिकोह Dara shikoh ने बाबा लाल बैरागी से कुल साठ सवाल किये थे और उन्हें सारे सवालों के जवाब मीले थे.

मियाँ मीर के मौत के बाद दारा शुकोह Dara shukoh नये गुरु की तलाश में लगातार यहां से वहां भटकते रहे. दारा शुकोह Dara shukoh की तलाश 6 वर्षो के बाद पूरी हुई. दारा शुकोह की भेट मियाँ मीर के ही एक शिष्य मुल्ला शाह से हुई थी. दारा शिकोह dara shikoh ने मुल्ला शाह को ही अपना गुरु मान लिया था. यह संतो से मिलने के बाद दारा शिकोह के व्यवहार में काफी फर्क पड़ा था.

दारा शिकोह Dara shikoh books अपनी किताब ‘सकीना-तूल-ओलिया’ लिखते है,

 

“हमने एक जर्रे को भी सूरज से अलग नही देखा,
पानी की हर बूँद अपने आप मे एक समंदर है,
सत्य को चाहे जिस नाम से पुकारो,
हर नाम खुदा के नामो में से एक है.”

दारा ने उपनिषदों का फ़ारसी अनुवाद भी करवाया. कहते है कि, यह उपनिषदों का अनुवाद करवाने के लिए दारा वाराणसी में रहे और 200 संस्कृत विद्वान पंडितों की सहायता ली. दारा ने ये फ़ारसी अनुवाद को ‘सिर-ए-अकबर’ नाम दिया. dara shikoh दारा शिकोह की मशहूर रचना ‘मज्म-उल- बहरेन’ को माना जाता है.

लोगो का मानना है कि, दारा शिकोह dara shikoh अगर दिल्ली का बादशाह बनता तो अकबर को भी पीछे धकेल देता.

औरंगजेब की ताजपोशी और युद्ध – Aurangzeb’s coronation and war

शाहजहाँ औरंगजेब को बिल्कुल भी पसंद नही करता था, यह बात तो अब जगजाहिर हो गई थी. इसी बीच शाहजहाँ के तबीयत बिगड़ ने की खबर आई. तब औरंगजेब दक्कन से, शुजा बंगाल से और मुराद गुजरात से अपनी-अपनी सेना लेकर दिल्ली चढ़ाई करने निकले.

उत्तराधिकारी के लिए यह युद्ध तकरीबन दो साल तक चली. यह समय दौरान औरंगजेब और शाहीसेना क बीच कई लड़ाइयां लड़ी गई. जिसमे धरमट और सामूगढ़ की जंगो को प्रमुख माना जाता है.

धरमट और सामूगढ़ की जंग में dara shikoh दारा शिकोह की हार हुई. इसी बीच दारा शिकोह की पत्नी Dara shikoh wife नादिरा बेगम की मृत्यु की खबर दारा शिकोह को मिली. जिससे वह पूरी तरह टूट गया था. इसी दौरान औरंगजेब ने शाहजहाँ को आगरा में नजरबंद कर दिया था और खुद को नया बादशाह घोषित कर दिया था.

दारा शिकोह Dara shikoh किसी तरह छुपते-छुपाते अफगानिस्तान अपने एक दोस्त मलिक जीवन के वहाँ भाग गया. परंतु मलिक जीवन भी औरंगजेब से मिला हुआ था. मलिक जीवन ने पहले तो दारा शुकोह Dara shukoh का स्वागत किया पर, धोखे के दारा शुकोह और उसके बेटे शिपिहर शुकोह को कैद कर दिया और दिल्ली औरंगजेब के पास भेज दिया.

औरंगजेब ने कैसे किया दारा शुकोह का अपमान और हत्या – How Aurangzeb insulted and killed Dara

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अफगानिस्तान से दिल्ली ला रहे दारा शिकोह के लिए औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया. जिसका वर्णन दिल्ली के शाही मेहमान वेनस के निकोलो मनूची ने अपनी किताब में कुछ ऐसा किया है.

मुजे आज भी याद है, वह तारीख थी 8 सितंबर 1659. दिल्ली की सड़कों पर भारी भीड़ थी. एक शाहजादे को उस दिन दिल्ली की सड़कों पर कैदी बनाकर घुमा रहे थे. वहाँ पैदल सैनिक, घोड़ सवार थे. जिन पर लोगो द्वारा ईंट और अंडे फेके जा रहे थे. एक मरियल हाथी पर फ़क़ीर की पौशाक पहने एक शाहजादा बैठा था. वह शाहजादा और कोई नही दारा शुकोह Dara shukoh था.

जिसकी यह हालत देखकर लोग फुट-फुट कर रो रहे थे, उस शाहजादे कि रिहाई की भीख मांग रहे थे. वह ऐसे रो रहे थे कि, वह कोई शाहजादा न होकर उनके ही घर का एक सदस्य हो. उन्ही भीड़ में से एक भिखारी ने शहजादे से भीख मांगी तो वह शहजादे ने अपनी पगड़ी और आसन उतारकर उस भिखारी को दे दिए. जिसे औरंगजेब ने पहले तो बेड़ियो में कैद किया और उस पर मुकदमा चलाकर उसका सर कलम करवा दिया.

दारा शुकोह के बारे में कुछ रोचक तथ्य – some unknown facts about Dara Shukoh

1. dara shukoh दारा शुकोह तुर्की, मिस्र और यूनान से भी किताबे मंगवा कर पढ़ता था.
2. ‎दारा शिकोह dara shukoh को हर साल दिल्ली सल्तनत से खर्च करने के लिए 2 करोड़ रुपयों का जखीरा मिलता था.
3. ‎दारा शिकोह का विवाह नादिरा बेगम से हुआ था.
4. ‎मियाँ मीर कादरिया सिलसिले के अव्वल दर्जे के संत थे.
5. ‎भारत मे सूफियों के कुल चार सिलसिले है.
6. ‎’सिर-ए-अकबर’ का हिंदी में मतलब महान रहस्य होता है.
7. ‎’मज्म-उल- बहरेन’ का मतलब होता है, दो महासागरों का मिलन. दारा शिकोह की यह किताब हिन्दू और मुस्लिम धर्म मे समानताए खोजने का पहला कदम था.

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